Friday, 10 April 2020

April 2020

 इतनी रफ्तार से जो भाग रही थी ज़िन्दगी , कुदरत ने कहा ज़रा ठहर।
कुछ तो हुआ है ,यूंही नहीं बरसा खुदा का यह कहर
सूनी गालियां है सुना सा है यह शहर।
इस कुदरत को जिसे मैं बर्बाद करने चला था ,
कितना नासमझ था खुदके कातिल का घर आवाद करने चला था।

भूला दिया था जो मैंने वह जहन में फिर से आ रहा है।
क्या सोया  हुआ मेरा प्यार मुजे बुला रहा है ।
यूं उनसे मुद्धत्तो से बिछड़े नहीं, आज जो बिछड़े तो सबकुछ फिर से याद आ रहा है।

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