इस हुस्न को यूं बरबाद न करो ।
इसका दीवाना कहीं बैठा दूर है।।
माना यह नस्वर है ।
पर तुम्हे क्या पता कितनी आंखों का नूर है।।
तुम्हे शायद फरक नहीं पड़ता हो।
पर शमा पर शहीद हुए परवानों के लिए जूठा ही सही थोड़ा रोलिया करो।
कई दीवाने होंगे आपके ।
आपने लिए न सही उन दीवानों का ही सोच कर थोड़ा सोलिया करो ।।
Yunhi baith baith soch Raha hoon ..
Ki kya soch Raha hoon,
Aksar aisey hi soch main dooba kuch bhi nahin soch pata hoon ,
Soch bhi sochti hogi kya soch hai meri ,
Jisko soch khud bhi soch nahi pati hogi...
Bus usi soch ki soch main Yun hi baithey baithey soch raha hoon
*उम्मीद और संतुष्टि का अजब रिश्ता है,*
*संतुष्टि के जिन्न को जगाने हर इंसान उम्मीद का चिराग खिसता है।*
मैं जानता हूं की मैं अकेला हूं ,
पर फिर भी क्यों लगाता है कि तुम हो ।
मैं जानता हूं कि तुम्हे नींद नहीं आती ,
फिर खुली आंखों से किसके ख्यालों में गुम हो।
जियो अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से ,किसी और के बताने से नहीं ।
हमेशा याद रखना ज़माना तुमसे है , तुम ज़माने से नहीं।
मुख मोड़ दो तुम लहरों का जो अपनी अड़ी पे चढ़ जाओ,
तुम्हें किसी और की जरूरत ही नहीं , तुम अकेले ही सब पर भरी पड़ जायो।
अपने आप को पहचानो और ध्यान से देखो उस आईने में ,
खुदा ने जो नायाब तोहफा दिया इस दुनिया को वो तुम हो।
मैं जानता हूं कि तुम्हे नींद नहीं आती ,
फिर खुली आंखों से किसके ख्यालों में गुम हो।
चुपके से निकले पत्तों का आनंद लो,
क्यों ख्वाहिशों के द्रख्तों में पतझड़ ढूंढते हो।
यहां जिंदे भी हिलकर राजी नहीं
और तुम मुर्दों मैं हलचल ढूंढते हो ।